” गंगा – जल सच, में जीवन – जल है ”
गंगा और हमारी संस्कृति एक दूसरे पर आधारित रहे हैं ।
वस्तुत : गंगा भारतवासियों की पहचान है और यह जन-भावना ही एक लोकप्रिय गीत में समाहित है और परिलक्षित भी होती है :
” हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है ”
गंगा भारतीय संस्कृति की जीवनधारा है । गंगा अध्यात्म और आस्था की संवाहिका है ।
संत कबीर ने कहा था :
” कबिरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर ”
यानि गंगा जल को ही निर्मलता की सबसे बड़ी कसौटी माना जाता था।
वस्तुत : हमारे जीवन मूल्यों में गंगा की पवित्रता का अर्थ है कि हम मन, वचन और कर्म से शुद्ध बने, गंगा की निर्मलता का अभिप्राय है कि हम निर्मल हृदय के साथ जीवन बिताएं और गंगा की अविरलता का तात्पर्य है कि बिना रुके हुए अपने जीवन पथ पर हम सतत आगे बढ़ते रहे ।
आज हम सबका दायित्व बन जाता है कि गंगा को एक बार फिर हम निर्मलता के उसी स्तर पर ले जाएं जिसका विवरण हम संत कबीर, संत रविदास तथा प्राचीन काल के ऋषि मुनियों की वाणी में पाते है । उसी स्तर की स्वच्छता को प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर ‘नमामि गंगे’
अभियान चलाया जा रहा है।
गंगा की पवित्रता, निर्मलता और अविरलता सदैव प्रत्येक भारतीय के जीवन में, मार्गदर्शन व प्रेरणा के प्रमुख स्रोत रहे हैं और आगे भी बने रहेंगे ।
मां गंगा का शुद्ध होना, हमारे पर्यावरण की स्वच्छता का एक महत्वपूर्ण मापदंड है ।
हमारे देश के एक बहुत बड़े भाग में पर्यावरण और संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन तभी हो सकता है जब गंगा की धारा अविरल व निर्मल बनी रहे ।
गंगा को स्वच्छ रखना, पर्यावरण का संरक्षण करना और हमारी संस्कृति और धरोहर को समृद्ध बनाना केवल सरकारों का काम नहीं है बल्कि सभी देशवासियों का सामाजिक और व्यक्तिगत दायित्व भी है। इस सोच को देशव्यापी स्तर पर अपनाने और आत्मसात करने की जरूरत है ।